इमारती लकड़ी या टिम्बर ( Wood and Timber ) part 1

परिचय (Introduction) :-

       सामान्य भाषा में काष्ठ कार्य ही बढ़ईगीरी कहलाता है।जिसके अंतर्गत लकड़ी का कार्य किया जाता है। मानव सभ्यता के प्रारंभ से ही लकड़ी का उपयोग अनेक रूपो में किया जाता रहा है।लकड़ी निर्माण संबंधित कार्यों का अध्धयन करने के लिए प्रमुख रूप से बढ़ईगीरी का प्रयोग किया जाता है।
        बहुत से अभियांत्रिक कार्यों के लिए लकड़ी का प्रयोग किया जाता है । एक वृक्ष को तीन भागों में बांटा जा सकता है। जड़, तना और शीर्ष । अभियांत्रिक में निर्माण कार्यों के लिए लकड़ी तने से ही प्राप्त होती है ।

       वृक्ष दो प्रकार के होते है-
1. बहिर्जात वृक्ष
2. अंतर्जात वृक्ष

1. बहिर्जात वृक्ष :- 

                           ऐसे वृक्ष जिनकी वृद्धि केंद्र से बाहर की ओर होती है, परन्तु यह वृद्धि छाल के अंदर ही विस्तारित होती है। इस लकड़ी का उपयोग साधरण अभियांत्रिकी कार्यो के लिए किया जाता है । इन वृक्षो में प्रतिवर्ष लकड़ी की एक नई समकेन्द्री परत का निर्माण होता है यह परत वार्षिक वलय कहलाती है।

2. अंतर्जात वृक्ष :-

                          ऐसे वृक्ष जिनकी वृद्धि केंद्र की और होती है । इनकी वार्षिक वलय अंदर की ओर जुड़ते हैं । इन वृक्षो की वृद्धि मुख्यतः लम्बाई में होती हैं।

इंजीनियरिंग या अभियांत्रिकी में लकड़ी के उपयोग के कारण:- अभियांत्रिकी में लकड़ी का प्रयोग निम्न मुख्य गुणों के कारण किया जाता हैं।
1. लकड़ी अन्य पदार्थों की अपेक्षा अधिक सामर्थ्य वाली ओर भार में हल्की होती है ।
2. लकड़ी को आवश्यकता के अनुसार किसी भी रूप में बदल सकते हैं।
3. लकड़ी के बने भागो को जोड़ना भी आसान होता हैं।
4. इसमें लचीलापन तथा आकस्मिक आघात सहन करने की पर्याप्त सामर्थ्य होती है ।
5. यह प्रत्येक स्थान पर आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं।
6. यह अन्य पदार्थों की तुलना में सस्ती भी होती है ।

इमारती लकड़ी या टिम्बर :- 

                                       जंगल मे खड़े वृक्षों को काटकर प्राप्त किये गए लकड़ी के टुकड़ों को ही टिम्बर कहते हैं। वह लकड़ी जो भवन निर्माण या अन्य इंजिनीरिंग के कार्यों में प्रयोग किया जाता है इमारती लकड़ी कहलाती है। यह लकड़ी बहिर्जात वृक्षों से प्राप्त होती है। उपयोगिता के आधार पर टिम्बर को निम्नलिखित दो भागों में बांटा जाता हैं।
1. नरम लकड़ी
2. कठोर लकड़ी

1. नरम लकड़ी :-    

                           इस प्रकार की लकड़ी में रेज़िन पदार्थ पाए जाते है तथा वार्षिक वलय स्पष्ट दिखाई देते हैं। यह हल्के रंग की सुगंधित तथा नियमित गठन वाली होती है। यह भार में हल्की होती है। इसके रेशे सीधे होते हैं इसलिए नर्म लकड़ी दुर्बल होती है अतः आसानी से लम्बाई की दिशा में चीरी जा सकती है । रेज़िन पदार्थों के कारण यह शीघ्र आग पकड़ती है। चीड़ , देवदार , अखरोट आदि वृक्षों की लकड़ी इस वर्ग में आती है ।

2. कठोर लकड़ी :- 

                           यह लकड़ी चौड़ी पत्ती वाले वृक्षों से प्राप्त होती हैं। इसमे रेज़िन पदार्थ नही होते परन्तु अम्ल की मात्रा अधिक होती हैं। इसके वार्षिक वलय बहुत पास पास होते हैं । यह भारी तथा गहरे रंग की होती है। रेज़िन की कमी के कारण यह लकड़ी शीघ्रता से आग नही पकड़ती । शीशम , साल , सागौन , नीम , बबूल , आम , महोगनी आदि इसके प्रमुख उदाहरण है।

लकड़ी के व्यापारिक आकार :-

1. लट्ठा :-  यह वृक्ष के तने का किसी भी माप का बेलनाकार सा भाग होता हैं।
2. शहतीर या बल्ली :-  वह लट्ठा जिसे चारो ओर से काटकर लगभग 75 mm × 75 mm वर्गाकार अनुप्रस्थ काट का बना दिया गया हो शहतीर कहलाता है।
3. स्तम्भ :- ये वर्गाकार या वृत्ताकार अनुप्रस्थ काट वाले होते है । जिनकी भुजा या व्यास 175 mm से 300 mm तक होती है।
4. कुन्दा :-  यह लगभग 250 mm × 100 mm आयताकार अनुप्रस्थ काट वाला होता है ।
5. तख्ता :-  यह लगभग 300 mm चौड़ा तथा 50 से 100 mm मोती आयताकार अनुप्रस्थ काट वाला और 2.5 m से 6.5 m तक लंबा होता है।
6. फलक या पटरा :-  यह भी तख्ते की तरह ही होता है जिसकी चौड़ाई 125 mm से अधिक तथा मोटाई 50 mm से कम होती है ।
7. बत्ता या पट्टी :- यह वह फलक है जिसकी चौड़ाई 180 mm से कम तथा मोटाई 30 mm से 50 mm से कम होती है।
8. उपकड़ी :- लकड़ी के वह टुकड़े जो उपयुक्त में से किसी मे भी न आते हो उपकड़ी कहलाते हैं । इसकी अनुप्रस्थ काट लगभग 50 mm × 50 mm अधिक होती है ।


Market size of Timber
Market size of Timber
टिम्बर के व्यापारिक रूप


लकड़ी चिराई की विधियाँ :-

                                       लकड़ी को सही व्यापारिक आकार में चीरने के लिए साधारणतया चिराई की निम्नलिखित विधियों का प्रयोग किया जाता है।

1. चौरस , आर-पार या साधारण चिराई :- 

                                                        इस प्रकार की चिराई में लट्ठे को अनेक समान्तर काटो में चीरा जाता है । लट्ठे चीरने की यह विधि बहुत सरल एवं सस्ती होती है। परन्तु इस प्रकार चीरे गए फलक सूखने पर विरूपित भी हो जाते है । अतः इस प्रकार चिरे गए फलक साधारण कामो के लिए ही प्रयोग किये जा सकते है ।

Flat , through and through or ordinary sawing
Flat , through and through or ordinary sawing
चौरस , आर-पार या साधारण चिराई


2. स्पर्शीय या टेन्जेनशियल चिराई :- 

                                                  इस विधि में लट्ठे को इस प्रकार चीरा जाता है कि चिराई रेखा वार्षिक वलय पर स्पर्शी हो । इस प्रकार चीरी लकड़ी में भी सिकुड़न तथा विरूपण हो जाता है , परन्तु उपचार अपेक्षाकृत कम समय में किया जाता है ।

3. त्रिज्या या चौथ चिराई :-

                                      इस विधि में लट्ठे को त्रिज्या की दिशा में या मज्ज रश्मियों की दिशा में चीरा जाता है । इस चिराई से सबसे अच्छी टिम्बर प्राप्त होती है। परन्तु इस चिराई में काफी लकड़ी बेकार चली जाती है । इस विधि से चिरी गयी लकड़ी की सतह सुन्दर होती है । सूखने के बाद लकड़ी में कोई दोष उत्पन्न नही होता है।


Sawing of Timber, Cutting of Timber in tangential , Radial sawing
Tangential sawing and Radial sawing

स्पर्शीय या टेन्जेनशियल  और त्रिज्या या चौथ चिराई


टिम्बर रूपांतरण के लिए मशीनें :- 

                                               टिम्बर रूपांतरण में प्रमुख मशीनों का प्रयोग किया जाता है।
1. पट्टी आरा मशीनें
2. गोल आरा मशीनें


1. पट्टी आरा मशीनें :-  

                               पट्टी आरा मशीनें दो प्रकार की होती है ।

A. उर्ध्व पट्टी आरा :- 

                             यह एक महत्वपूर्ण मशीन है जिसकी सहायता से अनेक प्रकार की कटाई की जा सकती है ।इसमें एक बिना सिरे की एक इस्पात की पट्टी ब्लेड की तरह होती है जिससे एक सिरे पर दांते बने होते है । ये दांते ही कटाई का कार्य करते हैं । बिना सिरे की पट्टी उर्ध्व समतल में दो पहियों पर चढ़ी रहती है। पट्टी एक प्लेटफार्म में खांचे में से गुजरती है। प्लेटफॉर्म खांचे से एक सिरे तक पट्टी के लिए झिर्री भी कटी होती है ।

Vertical band saw
Vertical Belt Saw or Vertical Band Saw
उर्ध्व पट्टी आरा मशीन


   निचले पहिये को विधुत मोटर द्वारा चलाया जाता है जिससे पट्टी भी चलने लगती है । धीरे धीरे जब पट्टी पूरी गति प्राप्त कर लेती है तो प्लेटफार्म पर रखें लट्ठे या लकड़ी के दवाव के कारण अपनी स्थिति से हटने का प्रयत्न करती है जिसे दो गाइडो की सहायता से स्थिति में रखा जाता है । काटने के समय पट्टी को मुड़ने से रोकने के लिए ब्लेड गाइड भी लगी रहती है । पट्टी के टूटने पर सुरक्षा के लिए दोनों पहिये पट्टी सहित रक्षकों द्वारा ढके रहते है ।

    कुछ प्लेटफार्म पर लम्बाई में चिराई के लिए रिपिंग बाढ़ लगी रहती है । इस बाढ़ को पट्टी से किसी दूरी पर बाँधकर काटी जाने वाली लकड़ी की चौड़ाई स्थिर रखी जा सकती है। कुछ प्लेटफार्म पर माइटर गेज के लिए खांचा भी बना होता है । इससे रेशो के लम्बवत कटाई या तिरछी कटाई में सहायता मिलती है ।












                                         

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